Tuesday, December 4, 2007
सम्पूर्णता!
दुनिया में
कोई भी तो
सम्पूर्ण नहीं है
यदि ऐसा होता
तो
दुनिया से
अधर्म न मिट जाता
कोई भी
कभी कोई
गल्ती न करता
मैं भी तो
सम्पूर्ण नहीं हूँ
इसलिये शायद
अपनी बात
सही तरीके से
न कह पाऊँ
पर कोई भी तो
सम्पूर्ण नहीं है
हरेक में
कोई न कोई
कमी तो है
किसी में
ज्यादा अच्छाईयाँ हैं
किसी में
ज्यादा बुराईयाँ
पर
दोनों में
तालमेल तो
बिठाना ही पड़ता है
नहीं तो
दुनिया में
रहना दूभर हो जाता है
किसी ने
सही ही तो कहा है
कि
दूसरे की
कमी देखने से पहले
अपनी कमी भी देखो
यदि तुम
किसी की कमी को
अनदेखा नहीं करते
तो तुम्हारी कमी
कोई क्यों
सहन करेगा
इक-दूजे के साथ
चलने के लिये
इक-दूजे को
सहन तो
करना ही पड़ेगा
इक-दूजे को
सहारा तो
देना ही पड़ेगा
तभी तो कोई
रिश्ता निभेगा
तभी तो समाज बनेगा
और
आगे चलेगा
चलता ही रहेगा !
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